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ट्रंप के पंगे

जनाब डोनाल्ड ट्रंप बहुत चालाकी से अमेरिका फर्स्ट की नीति अपना रहे हैं 😂 ट्रंप की कई अजीबोग़रीब कामों के पीछे एक कारण अमेरिका के ऊपर का आर्थिक बोझ कम करना भी है। जैसा कि सब जानते हैं विश्व का नेतृत्व करने की अमेरिकी महत्वकांक्षा से दुनिया में तो उथल पुथल हुई ही साथ–साथ अमेरिका पर भी आर्थिक बोझ बढ़ता जा रहा है। अमेरिका के खर्च का एक बहुत बड़ा हिस्सा दुनिया भर में लोकहित (लालच + महानता) के कार्यों में लगता है। इन खर्चों को बिना किसी वजह के तो आप कम नहीं कर सकते न !!!! तो जनाब अपनी विदेश नीति को आगे रखकर बेहद चालाकी से इन सब खर्चों को कम करते जा रहे है, अब बस उन्हें वजह चाहिए खर्च कम करने की 😎 ट्रंप बहुत चालाक है, ट्रंप कार्ड चलने में एकदम माहिर। और उनकी नीतियों में बिल्कुल भी ग़लत बात नहीं है आज ज़रूरत भी है अमेरिका को ऐसी नीतियों की। मैं बस इस बात से थोड़ा नाराज़ रहता कि ये प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग जैसी कोई बात को मानते ही नहीं 😏😤 UN को मिलने वाले कोष में कटौती तो तय है ही साथ साथ कुछ देशों को मिलने वाला आर्थिक सहयोग भी अब दरकिनार करने की योजना है। वैसे इससे पहले भी उन्होंने

India-China issues

China is assuming Pok(Pak occupied Kashmir) as his 5th provision, but the world know Kashmir is a disputed area so how could China make there any project(CPEC). the current doklam issue will bring this issue in mind whenever bilateral talk will happen.  Trade War Chinese trade policy is too dangerous for other countries. Chinese companies are spreading allover world but China isn't allowing most companies in his region. China challenged India to begin trade war, so I think its time to begin it. we'll definitely win the trade war whenever common people of India would join the war, because the inflation rate will hike when Trade war will begin and we should be ready to face it. and media can play an important role when it would awake people about this issue rather than awaking about Indian & Chinese military power. Facebook

गोरखालैंड समस्या और समाधान विश्लेषण

दार्जिलिंग में जो तनाव उत्पन्न हुए हैं, इसका असली कारण वहां का असंतुलित विकास और गोरखा समुदाय की पिछले कुछ सालों में की गई अनदेखी है, जिसका फायदा वहां के स्थानीय नेता अपने राजनीतिक लाभ के लिए कर रहे है। प. बंगाल सरकार के बंगाली भाषा को अनिवार्य बनाने के निर्णय ने तो सिर्फ आग में घी डालने का काम किया है। गोरखालैंड अलग राज्य की मांग 100 से भी ज्यादा साल पुरानी है। 1986 में आग एकदम से भड़क उठी थी , जिसमें 1200 से भी ज्यादा लोगों को आहुति देनी पड़ी थी। अब फिर कुछ उसी तरह के नज़ारे दिख रहे, पर यदि वही गलती फिर से हो तो क्या मतलब लोकतंत्र का... पड़ोस में चीन का होना समस्या को और भी ज्यादा गंभीर बना रहा, मतलब ये देश की सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा भी है। तो अब बात करते हैं समस्या के समाधान पर। रास्ते सिर्फ दो है, पहला की इंतजार करो, बातचीत करते रहो, क़िस्मत ने साथ दिया तो, आंदोलनकारी फिर से शांत हो जाएंगे; लेकिन एक गलती दोबारा हो इसकी संभावना कम ही होती है। दूसरा कि अलग राज्य की मांग स्वीकार कर ली जाए। इससे परिणाम ये होगा कि वहां GJM संगठन मजबूत हो जाएगा और हो सकता है कि वहां सरकार भी उसकी ही