Posts

Showing posts from July, 2021

अब तो झूठ मत बोलो 😴

ये हमारे विशिष्ट मध्यमवर्गीय घरवाले 😐 पता नहीं क्यूं तो ऐसा सोचते है कि हम बहुत जरूरी काम कर रहे है, हमें किसी भी काम के लिए परेशान करना ठीक नहीं, क्यों न कितनी ही परेशानी उन पर आ जाएं.. हमें परेशान नहीं करना है, न ही बताना है 🤐 और इसी कारण हम इस परेशानी में रहते है कि उन पर कोई परेशानी आ भी जायेगी तो न वो हमें बताएंगे, और न ही हम उनकी मदद कर पाएंगे, हमेशा सोचते रहते कि शायद उन्हें कोई परेशानी हो रही हो तो भी वो हमसे झूठ बोल रहे है कि सब चंगा है 🙂 अब इन्हें कौन समझाए कि हमारे लिए तो सबसे ज्यादा खास आप हो.. आपके लिए ही तो सब कर रहे हम भी.. ये काम धाम सब आपके लिए ही है.. आपके और हमारे अच्छे के लिए.. हम साथ रहें, हम खुश रहें, हम सुखी रहे बस, यही सबसे ज्यादा जरूरी है, विश्वास करें... कि अब हम भी समझदार हो गए है 🤗😊 --घर से दूर रहने वाले लोगों की व्यथा 🤓

मेरे पापा कहा करते थेे !

अक्सर लोग किसी उद्भोद्न में बड़ी ही ज्ञानवर्धक बात इस तरह कहते है कि "कि मेरे पापा कहा करते थे, मेरी मां कहती थी, मेरी दादी कहती थी आदि आदि" और इसके बाद एक मस्त सी ज्ञानवर्धक बात होती थी। और मैं सोचता यार पता नहीं क्यूं मेरे परिवार वालों ने तो कभी ऐसी ज्ञानवर्धक बात बोली ही नहीं जिससे मैं कुछ सीख सकूं, और कभी मेरे पास जो कुछ भी है उसका श्रेय उन्हें दे सकूं। लेकिन सच ये है कि हमारे परिवार ने हमें शब्दों से ज्यादा आदतों से सिखाया है, कि कैसे उन्होंने हमारे लिए कितनी सारी चीज़े की है, कैसे वे रहे है और कैसे उन्होंने हमें बड़ा किया है, दरअसल उनकी हर छोटी से बड़ी चीज़ में एक सीख होती थी।  हां हमारे पापा,दादा,मम्मी,दादी और परिवार के कोई सदस्य हम से कुछ ज्ञानवर्धक बात नहीं कहा करता था, लेकिन अपनी आदतों से ही वे बहुत कुछ सीखा दिया करते थे हमें 😊 Action speaks louder than words.

मोबाइल रेडियेशन क्या सच में खतरनाक होता है?

Image
टेलीकम्युनिकेशन में माइक्रोवेव का उपयोग होता है जो कि बहुत कम फ्रीक्वेंसी का रेडिएशन है। और रेडिएशन शब्द से डरो नहीं, जिस प्रकाश में हम देख पा रहे वो भी रेडिएशन ही है। जिसकी जितनी ज्यादा फ्रीक्वेंसी उसकी किसी वस्तु के आर पार जाने की उतनी ही ज्यादा काबिलियत। जैसे गामा रे.. आर पार चली जाती बड़ी दीवारों के.. X-रे हमारे शरीर के आर पार जा सकती, लेकिन हड्डियों के नहीं(मेडिकल फील्ड में कम फ्रीक्वेंसी की X-रे उपयोग होती.. थोडी ज्यादा की हो तो वो हड्डी के आर पार भी हो जाएं). अब ये जो स्पेक्ट्रम है इसमें क्रम से देखो X-रे के बाद अल्ट्रावायलेट आती है.. जो स्कीन को नुकसान पहुंचाती जिससे स्किन कैंसर जैसी बीमारी भी हो सकती। फिर अपना प्रकाश जिससे हम देख पाते। इसके बाद इंफ्रारेड जो किसी ऊष्मा(Heat) को विकिरण द्वारा ट्रांसमिट करता है.. और इसी के कारण सूरज की गर्मी हम तक आ पाती और तब जाकर माइक्रोवेव का नंबर आता जो कि कहीं से कहीं तक शरीर को भेदकर नुकसान पहुंचाने की क्षमता नहीं रखती.. इसकी वेवलेंथ ज्यादा होती तो ये छोटे से छोटे छेद में से भी निकल सकती और कितने ही टेढ़े मेढे रस्ते हो.. आसानी से टकराकर मुड