कैसे कैसे ऐसे वैसे हो गए? ऐसे वैसे कैसे कैसे हो गए?
दुनिया में सिर्फ़ उन्हीं को सुना जा रहा है जो या तो बहुत ही ज्यादा दक्षिणपंथी होते है या वामपंथी। लोगों को लगता है कि इन दो विचारधाराओं के अलावा कोई विचारधारा ही नहीं है। इसीलिए ही तो जो सरकार विरोधी सही बात करे उसे वामपंथी और जो सरकार समर्थित सही बात करे उसे दक्षिणपंथी घोषित कर दिया जाता है, और ठीक इसका उल्टा भी, अंग्रेजी में बोले तो वाइस–वर्सा। और मैं शतप्रतिशत ये दावे के साथ कह सकता हूं कि किसी को भी वाम या दक्षिण पंथी घोषित करने वाले और कहलाने वाले दोनों को इनका मतलब नहीं पता। क्योंकि अगर पता होता तो ये भी पता होता कि ये विचारधाराएं तो कब की मर चुकी है, आज बस इनके नाम और संस्थाएं बची है, जो इनसे अपने मतलब ख़ूब निकाल रही। चलों होंगे भी अगर ये दोनों वर्ग और विचारधारा, पर अगर इन दोनों से नफ़रत है सबको तो उन लोगों की बातें कोई क्यों नहीं सुनता जो नैतिक रूप से एकदम सही बात करे और इनके बीच की बात करें; पर ऐसा कैसे हम तोतों ने तो दो ही नाम सुने है इसीलिए ऐसा तो कोई वर्ग है ही नहीं जो नैतिकता से परिपूर्ण संविधान के दायरे में सही बात करें। क्योंकि संविधान बनाने वाले तो एलियन ...