विश्व जल दिवस विशेष – इतिहास से समाधान

आज विश्व जल दिवस है।
जल संकट को लेकर बहुत सी समस्याएं है जो अक्सर सुनने मिलती हैं आज तो विशेष दिन है तो ज्यादा ही मिलेगी। मैं ध्यान पानी को लेकर कुछ अलग तथ्यों पर ले जाना चाहूंगा।
भारत में जल संकट वो समस्या है जो हर साल लेकिन एक विशेष मौसम में होती है मतलब अप्रैल, मई, और जून ! बाकी समय तो हम बेइंतहा जल की बर्बादी कर सकते हैं। ध्यान हमें बस यहीं देना है कि जो पानी बाकी मौसम में बहकर समुद्र में चला जाता है उसे किसी भी तरह से जमीन के भीतर पहुंचा सके। पहले ये समस्या इतनी विकराल नहीं थी क्योंकि सीमेंटीकरण इस हद तक नहीं हुआ था। आज हर जगह सीमेंटीकरण हो जाने से पानी धरती के गर्भ में नहीं पहुंच पा रहा।
जल संरक्षण के लिए सबसे महत्वपूर्ण प्राकृतिक उपाय तो बस वन संवर्धन और वृक्षारोपण हैं। इसके अलावा वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को अपनाना बहुत ही कारगर उपाय है। पर इसको लेकर मुझे कोई भी कारगर उपाय दिख नहीं रहे जमीनी स्तर पर।


सरकार सभी को 2022 तक घर दिलवाने का दावा कर रही  इसका तो पता नहीं दिलवा पाएगी या नहीं पर इसमें वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम का न होने सरकारी दूरदर्शिता की कमी को प्रदर्शित कर रहा।
स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट 99 स्मार्ट सिटी तो बनाने की तैयारी कर ली गई है पर इनमें से किसी में भी वॉटर हार्वेस्टिंग जैसा कोई सिस्टम नहीं है।

भारतीय ऐतिहासिक धरोहरों में सबसे प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता की नगरीय व्यवस्था आज हमारे सामने एक आदर्श प्रस्तुत करती है जल संकट से निपटने में।
धोलाविरा शहर जो सिंधु घाटी सभ्यता के 5 बड़े नगरों में शामिल हैं ऐसी जगह पर स्थित है जहां गर्मी में दूर–दूर तक पानी मिलना मुश्किल है वो जगह है कच्छ का रण में स्थित एक द्वीप। धोलावीरा में जल  व्यवस्था इतनी बेहतरीन रही कि ये उस समय का महानगर बन गया जबकि इसके चारों ओर समुद्र का ख़ारा पानी मौजूद है।
(इसके बारे में खुद से पढ़िए हर चीज़ मैं परोसने नहीं बैठा😂)

अंत में इतना ही कहूंगा कब तक हम अपने इतिहास पर गर्व करते हुए अपनी तरक्की में बाधा बनेंगे। इतिहास सीखने के लिए होता है। गलतियों से सबक लेने के लिए होता है।
Save Water , Save Earth, Save Humans👍

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