ऐसे कैसे होगा हिंदी विकास?
अपनी हिंदी भाषा में दूसरी भाषा के शब्दों के आने की परम्परा बहुत पुरानी है। ज्यादातर हिंदी भाषियों को पता ही होगा तत्सम, तद्भव देशज और विदेशज शब्दों में अंतर। यदि अंग्रेजी के शब्द भी आए तो इनसे परहेज़ नहीं होना चाहिए। अंग्रेजी ही नहीं हर भाषा के शब्द आए इसमें, भाषा का विकास इसी से होता है हमें ये मानना होगा। भाषा की शुद्धता बनाए रखने की कोशिश उसे सीमित करती है और किसी भी भाषा के विकास में बहुत ही बाधक है जिसका उदाहण हमारी संस्कृत जैसी उत्कृष्ट और परिष्कृत भाषा सामने है। दूसरी बात जो भाषा के विकास के लिए जरूरी है वो है इसका साहित्य, मैं ये नहीं कह रहा कि हिंदी साहित्य से भरपूर नहीं है। पर साहित्य के कुछ अहम हिस्से जिसमें विज्ञान और तकनीक आदि आते है बहुत कम ही परिलक्षित होते दिखते है। साहित्य का एक अहम हिस्सा होता है पत्रकारिता, पर मुझे नाम गिनाओ कि कितने ऐसे अखबार और पत्रिकाएं है जिनकी खबरों और लेखों की विश्वसनीयता पर तुम 100 फ़ीसदी विश्वास कर सकते हो। अपनी भारतीय संस्कृति और दर्शन से जुड़े तथ्य जिनको अक्सर मैं गूगल पर सर्च करता हूं तो मुझे सारे अच्छे लेख और उत्कृष्ट शोध अंग्रेजी मे...