Don't Judge
"लोग ऐसे तो बड़े जज बने फिरते है...."
लेकिन सच्चाई तो ये है कि हमारे देश में अभी तक ऐसा कोई सही सिस्टम ही नहीं बना है, जिससे कोई साधारण आदमी किसी न्यायालय में न्यायधीश बनने की या अपने बच्चों को न्यायाधीश बनाने की सोच सकें।
देश को संभालने वाले प्रमुख अंग ब्यूरोक्रेट IAS, IPS आदि एक बहुत कठिन तपस्या (UPSC परीक्षा) के बाद सिस्टम में आते है, सांसद, विधायक, मंत्रीगण अपनी लोकप्रियता के बावजूद भी निर्वाचन की प्रक्रिया से चुन कर आते है। लेकिन न्यायाधीशगण को चुने जाने की कोई खास पारदर्शी प्रक्रिया नहीं है, इसके बावजूद भी वो लोकमत की सरकार के बनाए कानून को पलटने की ताकत रखते है। हास्यपद है, लेकिन होता यही है।
इसमें बदलाव की जरूरत है, जिसके लिए एक वर्तमान सरकार ने एक ऑल इंडिया ज्यूडिशियल सर्विस लाने पर विचार कर रही है। लेकिन 2 दिन पहले देश के कानून मंत्री ने संसद में बताया कि देश के विभिन्न न्यायालयों में केवल 2 उच्च न्यायालय और 30 में से 2 राज्य को छोड़कर कोई भी ऐसे किसी बदलाव का समर्थन नहीं कर रहा है।
मुझे ये अटपटा नहीं लगा, क्योंकि ये किसी भी समझदार की समझ से शायद ही परे होगा कि क्यों वे सब पुरानी अपारदर्शी प्रक्रिया को बदलने नहीं देना चाहते। कोई कितने भी बड़े आदर्शों की बात करें, लेकिन जब वही आदर्श आपके फायदे में बाधा बनने लगे तो आप आदर्शों को छोड़ अपना फायदा पहले देखोगे। लेकिन रिफॉर्म तो जरूरी है और वक्त आ गया है कि देश एक ऑल इंडिया ज्यूडिशियल सिस्टम को अपनाएं, जिससे आने वाली पीढ़ी के सामान्य बच्चें भी देश के सर्वोच्च पदों पर न्यायाधीश बनने का सपना न सिर्फ देख सकें बल्कि उसे पूरा करने के लिए मेहनत भी कर सकें।
नोट: कोई बॉलीवुड बोले या पॉलिटिक्स ,मेरे हिसाब से तो सबसे ज्यादा नेपोटिज्म और फेवोरोटिज्म अगर किसी क्षेत्र में है तो वो न्यायिक व्यवस्था में ही है।
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