तेजोमण्डिता उज्ज्वला भवाम्यहं शक्ति: शिवालिका ||

जब हम देवी पार्वती का नाम लेते है, तो वो देवी जो भगवान शिव की अर्धांगिनी है, उनका चित्रण मन में आता है ।
लेकिन जब हम शक्ति स्वरूपिणी माँ दुर्गा का नाम लेते है, तो माता का एक अलग स्वतन्त्र रूप , माता की एक अलग पहचान हमें दृष्टिगोचर होती है। वो देवी जिनका शिव की ही तरह ना आदि है ना अंत वो है माँ दुर्गा। सांख्य दर्शन अनुसार शिव अगर पुरुष है तो माँ दुर्गा प्रकृति दोनों का एक अलग अस्तित्व लेकिन दोनों एक दूसरें के बिना अधूरे। शक्ति और शिव में समानता का भाव है दोनों में कोई ज़्यादा महत्व का हो या कोई कम महत्व का हो ऐसा बिल्कुल नहीं है । जब भी कोई विकट सामाजिक परिस्थिति होती तो शिव हो या माँ शक्ति अकेले ही उनसे निपटने के लिए सक्षम होते। ना हलाहल विष पीने के लिए शिव को माँ पार्वती की ज़रूरता पड़ी, और ना ही महिषासुर वध के लिए माता को शिव की । लेकिन अपने व्यक्तिगत जीवन में तो शिव और शक्ति दोनों को एक दूसरे की इतनी जरूरत होती है, कि माता ने जहाँ शिव को पाने के लिए हज़ारों वर्षों की कठिन तपस्या की, तो वहाँ शिव भी उनके वियोग में तीसरा नेत्र खोल सृष्टि संहारक तांडव करने लग गए। 

ये शिव-शक्ति युगल, हमें अपने जीवन में ऐसी सोच को अपनाने की प्रेरणा देते है। आदिदेव और माँ शक्ति ने अपने अर्धनारीश्वर स्वरूप से हम सबको अपने वैवाहिक और सामाजिक जीवन के लिए ये स्टैण्डर्ड बना कर दिए। लेकिन समय के चक्र के साथ हमारा समाज शिव-शक्ति के इन आदर्शों को भूलता गया, और स्त्री-पुरुष में असमानता और भेदभाव बढ़ता जा रहा है, और इस भेदभाव के चलते अब तो सामाजिक विकृति आने लगी है, जिसका प्रमाण है,समाज में बढ़ते विवाह-विच्छेद के किस्से।
आज बहुत ही नितांत आवश्यकता है कि शक्ति और शिव के बनाएँ उस स्टैण्डर्ड सिस्टम से हमारे समाज को कैलिब्रेट किया जाएँ। शिव और पार्वती के आदर्शों को जीवन में फिर से अपनाया जाएँ। सबसे पहले व्यक्तिगत स्तर पर, फिर पारिवारिक और फिर सामाजिक स्तर पर बदलाव लाना ही होगा, अन्यथा समाज ऐसे गर्त में चला जाएगा कि वहाँ से निकलना फिर असंभव होगा। 

शुरुआत स्वयं से करें…..👍





तेजोमण्डिता उज्ज्वला 
भवाम्यहं शक्ति: शिवालिका ||
अर्थ- तेज से प्रकाशित और उज्ज्वलित शिव की ऊर्जायुक्त  शक्ति हूं मैं।

#WomensDay


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