यमन में अकाल, क्या फ़िर से बंगाल? (विश्व आहार दिवस)

1943 का बंगाल–अकाल। माना उस हालत से हमें नहीं गुजरना पड़ा, लेकिन आज जब उसकी तस्वीरों पर नज़र जाती हैं तो रूह कांप जाती है।  इसकी गिनती मानव इतिहास की सबसे भयानक आपदाओं में की जा सकती है। इसमें कलकत्ता की सड़कें हड्डियों के ढांचों से भर गई थी। मुझसे तो लिखा भी नहीं जा रहा, गूगल पर सर्च करके आप ख़ुद तस्वीरें और जानकारी प्राप्त कर सकते हो।
बंगाल अकाल की इतनी भयावहता का कारण प्राकृतिक तो था ही लेकिन वैश्विक मानवता के ठेकेदारों की अनदेखी ने इसमें घी डालने का काम किया था। विंस्टन चर्चिल जिसे द्वितीय विश्वयुद्ध का हीरो माना जाता है उसकी क्रूरता के तो क्या कहने!
 आज 75 साल बाद कुछ ऐसे ही हालात यमन में बनें है। यमन ऐतिहासिक रूप से विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक , लेकिन आज वहां भयंकर अकाल है, और इसका कारण प्राकृतिक नहीं बल्कि वहां पर पैदा हुए युद्ध जैसे हालात है। यमन में छिड़ा है गृहयुद्ध जिसे हम दो राजनीतिक शक्तियों का आपसी युद्ध भी कह सकते हैं, जिसमें सऊदी अरब और अमेरिका का हस्तक्षेप भी जगजाहिर है। आज जिसके पास पैसा है उसके पास पावर होती है, और जिसके पास पावर है उसके खिलाफ़ कोई नहीं बोलता चाहे वो कितने भी अत्याचार क्यों न करें। हर कोई सिर्फ़ वहां ही ध्यान देता है जहां उसे कुछ फ़ायदा दिखे। ईरान में, अफगानिस्तान में, यहां तक कि भारत के कश्मीर में कुछ देशों और संस्थाओं को मानवाधिकारों का उलंघन दिखाई दिया पर यमन के प्रति पिछले तीन सालों से उदासीनता छायी हुई थी। यमन में ना तो ख़ूब खनिज भंडार है और न ही तेल के विशाल भंडार, वहां की तो सिर्फ़ ज़मीन उपजाऊ है , जो इन हालातों में किसी का भी पेट भरने में असफल सिद्ध हो रही।
भारत दो दिन पहले ही संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद का सदस्य बना है वो भी ऐतिहासिक 188 देशों के समर्थन से इतने वोट आजतक किसी भी देश को प्राप्त नहीं हुए। ये दिखलाता है कि भारत के प्रति दुनिया में किस तरह का विश्वास है। तो ये समय है कि इस विश्वास को बरक़रार रखा जाएं और हमारे एक पड़ोसी मित्र को ( मुंबई के समुद्र मार्ग से मात्र २००० किमी दूर) मानवता के नाते ज्यादा से ज्यादा खाद्यान्न की आपूर्ति की जाएं, ताकि हमें १९४३ वाला दूसरा बंगाल न देखने मिले।
नोट– भारत में हर साल 24000 मीट्रिक टन अनाज बर्बाद होता है।

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