जीवन है चलने का नाम

मेरी हमेशा से आदत रही है कि मैं अपने तरफ से कभी कोई ग्रुप नहीं बनाता... जो बना बनाया ग्रुप मिल गया.. बस वही है.. और उसके सारे सदस्य अपने ग्रुप में है। जैसे स्कूल में या कॉलेज में मेरी क्लास में जितने भी साथ में रहे हो वो सब मेरा ग्रुप है... वैसे ज्यादातर लोग दूसरों से, ये तेरा ग्रुप ये हमारा ग्रुप, कहकर दूरी बना लेते थे.. लेकिन शायद मैं ही ऐसा एकमात्र बंदा रहा हूं जो या तो किसी ग्रुप में नहीं था या ऐसा भी कह सकते कि हर ग्रुप का एक सदस्य मैं हमेशा रहा।

लेकिन कॉलेज के बाद 2 साल तो मैं लगभग नहीं के बराबर लोगों से मिला.... मेरी बात भी दिन में 4-5 लोगों से ज्यादा किसी से नहीं होती थी...। 
लेकिन अब जबसे थोड़ा रेगुलर रेलवे में काम शुरू किया है, तबसे रोज-रोज नए लोगों से मिलना, नई बातें सीखना, अपने कार्यक्षेत्र के व हर तरह के लोगों के साथ बैठना, बातें करना, काम करना, अपने अपने अनुभव बताना। अब ये दैनिक दिनचर्या में शामिल होकर एक आम बात हो गई है। अगर हम भले हैं ना, तो सामने वाले भी भले ही लगते, और इन भले लोगों से बातें करने में अपना समय कब गुजार देते हैं पता ही नही चलता.... इनमें से कई तो अच्छे दोस्त होने का अहसास भी करा देते। 
और इन सब में मजा बहुत आ रहा..! और लोगों से मिलने उनसे बात करने की भूख बढ़ती जा रही...।

इतने लोगों से रोज मिलने के बाद भी कुछ अधूरापन लगता है.. शायद तलाश कर रहा ये दिल किसी की जिसके बाद मैं पूर्णता को प्राप्त कर लूं... ... हां, हां वो स्त्री ही होगी... क्योंकि जब भगवान शिव तक मां शक्ति के बिना पूर्णता नहीं पा सकें, तो हम क्या चीज़ है...।

Not everyone who comes into our life will stay forever, so just live the moment till they are with us ❤️ 


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