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Nature’s Wonder The Anthills

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While I was on my baster trip last year, I saw this type of structural marvels built with a fort like design in various Locations, It caught my curious attention. after asking, I got to know that these magnificent mud castles are built by a tiny creatures that we call “ants”. It was surprising to me , So I touched and felt the these Anthills with curiosity. It was very hard, rough and unbreakable strong. I have a cameraman with me (my nephew), So He captured these wonderful moments with nature’s antique creature.  So Now I’m dumping these here☺️ We should always learn from nature always, in this case termites are able to build mounds that are billions of times their size because they work together in a very sophisticated coordination and collaboration. They protect their mounds together and find happiness inside them. We humans should also do the same. Unity and togetherness is our strength and success.

तेजोमण्डिता उज्ज्वला भवाम्यहं शक्ति: शिवालिका ||

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जब हम देवी पार्वती का नाम लेते है, तो वो देवी जो भगवान शिव की अर्धांगिनी है, उनका चित्रण मन में आता है । लेकिन जब हम शक्ति स्वरूपिणी माँ दुर्गा का नाम लेते है, तो माता का एक अलग स्वतन्त्र रूप , माता की एक अलग पहचान हमें दृष्टिगोचर होती है। वो देवी जिनका शिव की ही तरह ना आदि है ना अंत वो है माँ दुर्गा। सांख्य दर्शन अनुसार शिव अगर पुरुष है तो माँ दुर्गा प्रकृति दोनों का एक अलग अस्तित्व लेकिन दोनों एक दूसरें के बिना अधूरे। शक्ति और शिव में समानता का भाव है दोनों में कोई ज़्यादा महत्व का हो या कोई कम महत्व का हो ऐसा बिल्कुल नहीं है । जब भी कोई विकट सामाजिक परिस्थिति होती तो शिव हो या माँ शक्ति अकेले ही उनसे निपटने के लिए सक्षम होते। ना हलाहल विष पीने के लिए शिव को माँ पार्वती की ज़रूरता पड़ी, और ना ही महिषासुर वध के लिए माता को शिव की । लेकिन अपने व्यक्तिगत जीवन में तो शिव और शक्ति दोनों को एक दूसरे की इतनी जरूरत होती है, कि माता ने जहाँ शिव को पाने के लिए हज़ारों वर्षों की कठिन तपस्या की, तो वहाँ शिव भी उनके वियोग में तीसरा नेत्र खोल सृष्टि संहारक तांडव करने लग गए।  ये शिव-शक्ति युगल,...

इतिहास - भूतकाल में घटित सच्चाई या फिर मनगढ़ंत कहानियाँ

बचपन में इतिहास की किताबें कहानी की तरह पढ़ डालता था । फिर समझ आया कि ये घटनाएं सच्ची है। लेकिन अब बड़ा होने पर उसमें इतने फेरबदल देख रहा हुं कि लगता है उन सब किताबों को कहानी समझना ही ज़्यादा सही था। असली इतिहास अगर जानना है तो सारा देश घूमों और हर जगह बने ऐतिहासिक भवनों, संग्रहालयों, मंदिरों और मूर्तियों के खंडहर देखों। बहुत- सी बातें अपने आप समझ आ जायेगी। सभी को कार्तिक पूर्णिमा की ढेर सारी शुभकामनाएं।  आज गुरुनानक जयंती के कारण सरकारी अवकाश है। गुरुनानक जी के प्रति श्रद्धा-स्वरूप उनके दर्शन के बारे में जानने के लिए पढ़ना शुरू किया ही था कि उनकी जन्मतारीख देखा तो 15 अप्रैल 1469 ई. दिखी। अलग-अलग जगहों पर बहुत खोजबीन करने पर यही तारीख सही लगी। फिर देखा कि ऐसा कि ऐसा कोई तो कैलेंडर होगा जिसमें कभी कार्तिक पूर्णिमा Oct-Nov की जगह अप्रैल में आ गई हो या ऐसा कुछ तो होगा जिसके कारण तिथियों में ये फेरबदल हुआ हो.. कुछ साक्ष्य नहीं मिले। कुछ स्रोतों के अनुसार गुरुनानक जी के जन्म के 399 साल बाद 1868 ई. पहली बार गुरु नानक जयंती वैशाखी की जगह कार्तिक पूर्णिमा को मनाई गई। इसका कारण जो भी मिले ...

किसानों पर एक एहसान करना, कि उनपर कोई एहसान ना करना

पिछले कई सालों से था, ये ख़याल मेरे मन में, अब टैक्स पर बात छिड़ी ही हैं, तो चलो आज कह देते हैं। 🌾किसानों पर टैक्स लगाना चाहिए, ज़रूर लगना चाहिए।🌾 ऐसा मैं इसीलिए कह रहा हूँ क्योंकि हर कोई अपने आस-पास के क्षेत्र में ही देख लेना ऐसे कितने समृद्ध किसान होंगे जो साल में 2 फसल निकालने के बाद भी आय 3-5 लाख से ज़्यादा की आय निकाल पाते होंगे वो भी फसल एकदम अच्छी होने पर ही। देश में बड़े से बड़ा किसान भी आज 10 लाख के ऊपर शुद्ध आय नहीं निकाल पाता होगा। तो इस हिसाब से एक आम किसान तो कहीं से कहीं तक आयकर के दायरे में नहीं आने वाले। मैं तो चाहता हूँ कि ये टैक्स की लालची सरकारें कम से कम इसी आयकर के लालच के चलते हम किसानों की आय भी बढ़वाने वाली योजनाओं पर काम करें। … हम किसान बराबर बदनाम है कि टैक्स नहीं पटाते जबकि हमारे नामपर बहुत से ख्यातिप्राप्त और बड़े बड़े व्यवसायी लोग अपनी आय कृषि में दिखाकर टैक्स में भयंकर लाभ लेते है। स्वतंत्रता के पहले तो टैक्स किसानों पर ही लगता था.. कोई भी काल हो प्राचीन, मध्य या ये अंग्रेजों का क्रूर आधुनिक काल। तो अब ऐसा क्यों है कि किसानों को आयकर के दायरे से बाहर रख...

बड़ेपापा (मेरे प्रेरणास्रोत)

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बचपन से उनका हाथ था सर पर, जो दबाव सा डालता था, हमेशा अनुशासित रहने का, पढ़ाई करने का, गलत आदतों में न पड़ने का..आदि आदि.... कभी-कभी एक बोझ सा लगता था उनका वो हाथ। फिर धीरे-धीरे जब मैं बड़ा हुआ,थोड़ा समझदार हुआ... तो समझ आया कि जिनका वो हाथ था न , उन्होंने तो न जाने कितना बोझ उठाया हुआ है अपने कंधों पर... और जो हाथ अपने बच्चों पर दबाव देने के लिए रखा है वो दरअसल हमें मजबूत बनाने के लिए है... जिससे कि हम जिंदगी की विभिन्न चुनौतियों को पार पाने लायक बन सके। और जब हमें ये समझ आया न तो उन्हें भी समझ आ चुका था कि हमें ये समझ आ गया है.... तभी तो उन्होंने वो हाथ का दबाव कम तो कर दिया... लेकिन हाथ हटाया नहीं था। फिर एक दिन उनके इसी दबाव और आशीर्वाद के फलस्वरूप मुझे सफलता मिली और उस दिन उनके चेहरे पर जो खुशी की चमक थी वो गजब ही थी..UNEXPLAINABLE ...! इसके बाद से उन्होंने अपना हाथ सर से हटा दिया और हाथों को हाथ में लेकर इस दुनियादारी में साथ चलना सिखाने लगे। वो जो बचपन से सर पर हाथ था... मेरे कुछ भी कर गुजरने की हिम्मत का... वो कारण था मेरी बेफिक्री का... ये बेफिक्री इतनी आसानी से जा तो सकती नही...

नये जमाने के भिखारी

पिछले कुछ महीनों से Youtube Facebook जैसी साइट्स पर भीख मांगने वाले विज्ञापनों की भरमार सी हो गई है... इन विज्ञापनों में किसी असहाय, लाचार लोगों को एक प्रोडक्ट की तरह पेश किया जा रहा और उनकी बेबसी दिखाकर पैसे मांगे जा रहे। हो सकता है उनका उद्देश्य शायद सही भी हो.. लेकिन जितना ये NGOs विज्ञापन आदि पर खर्च कर रहे उससे अच्छा तो हजारों लोगों की मदद हो गई होती। और ये लोग विज्ञापन दिखा भी किसे रहे... हम जैसे आम लोगों को... जिनके पास पैसे की भले ही कमी हो सकती है, लेकिन मदद मांगने और मदद चाहने वालों की कोई कमी नहीं है... हम जैसे लोगों को किसी की मदद करने और दान-दक्षिणा करने के लिए किसी NGO की जरूरत नहीं है, हम अपने आसपास ही नजर दौड़ाएं तो हजारों लोग ऐसे मिलेंगे जिन्हें सच में मानवीय मदद की जरूरत होती है। सुना है और कई बार सामने भी देखा है, भीख मांगने को एक धंधे की तरह अपनाकर लोगों ने बड़ी-बड़ी बिल्डिंग्स खड़ी कर रखी है। बस इसी तरह की स्कीम अब ये ऑनलाइन भी चलाने लगे है, अपने सामने भिखारियों को देखकर हम थोड़ा अंदाज तो लगा ही लेते थे कि क्या सच में इसे जरूरत है या नहीं। लेकिन ऑनलाइन में तो लाचार...

Don't Judge

"लोग ऐसे तो बड़े जज बने फिरते है...." लेकिन सच्चाई तो ये है कि हमारे देश में अभी तक ऐसा कोई सही सिस्टम ही नहीं बना है, जिससे कोई साधारण आदमी किसी न्यायालय में न्यायधीश बनने की या अपने बच्चों को न्यायाधीश बनाने की सोच सकें। देश को संभालने वाले प्रमुख अंग ब्यूरोक्रेट IAS, IPS आदि एक बहुत कठिन तपस्या (UPSC परीक्षा) के बाद सिस्टम में आते है, सांसद, विधायक, मंत्रीगण अपनी लोकप्रियता के बावजूद भी निर्वाचन की प्रक्रिया से चुन कर आते है। लेकिन न्यायाधीशगण को चुने जाने की कोई खास पारदर्शी प्रक्रिया नहीं है, इसके बावजूद भी वो लोकमत की सरकार के बनाए कानून को पलटने की ताकत रखते है। हास्यपद है, लेकिन होता यही है। इसमें बदलाव की जरूरत है, जिसके लिए एक वर्तमान सरकार ने एक ऑल इंडिया ज्यूडिशियल सर्विस लाने पर विचार कर रही है। लेकिन 2 दिन पहले देश के कानून मंत्री ने संसद में बताया कि देश के विभिन्न न्यायालयों में केवल 2 उच्च न्यायालय और 30 में से 2 राज्य को छोड़कर कोई भी ऐसे किसी बदलाव का समर्थन नहीं कर रहा है। मुझे ये अटपटा नहीं लगा, क्योंकि ये किसी भी समझदार की समझ से शायद ही परे होगा कि क्यो...

पूजा वगैरह सब बेमतलब की बातें है!

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हमारे त्यौहार, परंपराएं , चलन...आदि पता नहीं कब, किसने और कैसे बनाएं होंगे... लेकिन जो बने हैं... बड़े ही बेहतरीन बने है। बहुत से लोगों को ये बेमतलब की चीज ही लगगी, जब तक वो इसको करीब से देखकर समझेंगे नहीं। ये कुछ सामाजिक शब्द है, "समरसता", "भाईचारा", "सद्भाव","उल्लास", "एकता" आदि इनके अर्थ यदि ढूंढने है तो शब्दकोश नहीं, मेरे गांवों में आना किसी उत्सव के समय... रुकना और देखना करीब से और तब भी समझ न आएं तो पूछ लेना कि क्या महत्व है इन त्योहारों का, इसमें होने वाली विभिन्न रस्मों और परम्पराओं का। मूर्ति पूजा का महत्व - मेरे गांव में साल में ३ बार मूर्ति स्थापित कर पूजा अर्चना की जाती है।  भादो मास कृष्ण अष्टमी को कन्हैया जी, इसमें पूरा परिवार अपनी व्यस्त जीवन से समय निकाल कर एक पूर्ण उल्लास के साथ एक होकर न सिर्फ प्रभु का जन्मोत्सव मनाते है बल्कि जीवन की सब परेशानियों को भूल खूब मज़े करते है रात में चौसर खेल कर(कोई कुछ भी कहें; चौसर परिवार को तोड़ता नहीं, जोड़ता है।) अंत में मूर्ति विसर्जन के पश्चात सभी आपस में भुजली(गेंहू का कोमल हरा तना...

चमचों से सावधान

अगर जिंदगी में थोड़े भी सफल हुए हो ना, तो बस अपने चमचों से दूर रहना; क्योंकि चमचे लोग तुम्हें महानता का एहसास जरूर करा सकते, लेकिन महान नहीं बना सकते... उसके लिए तो तुम्हारा आचरण और मेहनत ही काम आएगा। चमचे तुम्हें अहंकारी बना देते है और तुम्हारी तरक्की में सबसे बड़ी बाधा होते है। और हां तुम वो चमन चुतिये होते हो जो मन ही मन खुद की तारीफ से खुश तो होते हो लेकिन असलियत में तुम्हारे पीछे हजार आलोचना होती है तुम्हारी नासमझियों की जो तुम्हें पता तक नहीं चलती। कहते है की भारत के सिस्टम में अफसरशाही और लालफिताशाही हावी है, जो देश की तरक्की में बाधक है... हां सच कहते है,.. लेकिन इस अफसरशाही के पीछे की असली जड़ चमचागिरी हैं... और ये चमचागिरी अभी से नहीं है अंग्रेजो के समय से है... उनकी चमचागिरी करने वाले ही उत्तराधिकारी हुए और धीरे धीरे ये चमचागिरी हर सिस्टम में बैठे व्यक्ति के व्यवहार में आ गई... आज हर कोई पहले खुद अपने ऊपर वाले की चमचागिरी करता है.. और फिर ऐसी ही चमचागिरी की उम्मीद वो अपने नीचे वालों से रखता है... और निसंदेह लोग लगे भी हुए है... क्योंकि आज चमचागिरी एक प्रोटोकॉल बन गया है... औ...